My Realistic Poem..!!
जो जो भी हो रहा है
जो जो भी हो रहा है
सब दस्त-ए-क़ुदरत
मंज़ूर-ए-रब हो रहा है
हर मरीज़ को सफ़ा
हर दाक़तरको मुनाफ़ा
बूढ़े,मधु-प्रमेह,बीपी
कमजोर तवंगरको मौत
मुफ़लिसी को फाँका
अमीरी के संग तक़ाज़ा
ज्ञानी को प्रभु से नाता
दानीको पुण्य मुआवज़ा
जो जो भी हो रहा है
जो जो भी हो रहा है
सब दस्त-ए-क़ुदरत
मंज़ूर-ए-रब हो रहा है
बढ़ें थे जुर्म भूले संस्कार
स्त्री गरिमा थी नीलाम
थी ख़ून-रेज़ी भी आम
नोटबंदी की काम तमाम
मिडीया सिफँ तमाशा
ज़ुल्मीं हुकूमत सरेआम
गुंडागर्दी यूनिवर्सिटी में
था लाठीचार्ज धरणों में
सत्तानशाखोरी दिमाग़ में
नाइन्साफ़ी अदालतों में
जो जो भी हो रहा था
जो जो भी हो रहा था
देखनहार देख रहा था
था खामोश पर देख रहा था
आज कोरोना नामक लठ
उसकी चलत, बंदे देखत रहत
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