My New Poem ..!!!
जब हम नजरे झुका कर
अपनी मर्यादा में चलते है..
तब ही हमारे भाईसा औऱ
पापा सा सर उठा कर चलते है..
हमारी चाल चलन के दम पर
ही ख़ानदानी भी पनपती है ..
आवारगी है ज़ालसाझी यहाँ
बहके क़दमसे डूबती शान है ..
अमल से ही हमे पुस्तें सँवारनी
व नस्ल-ए-पुख़्तगी बढ़ानी है ..
संस्कृति परंपरा मान-मर्यादा ही
औरतका असली गहना तो है ..
लाज़ इस गहने की हर दौर हर
हाल में हमेँ ही तो निभानी है ..!!