सावन सी हरियाली मन तीज सा तरसे है।
आ जाओ कहीं से बादल झूम के बरसे है।
मन हर्षित है कुम्हलाई बेला खिल गयी है।
काली रात में बिजली रह रह के चमके है।
मुस्कान तेरी क़ातिल आंखें तेरी नशीली हैं
बादल भी बौरा गए हैं चूड़ी तेरी खनके है।
फ़िज़ा मदहोश हो गयी रिमझिम बारिश में।
गजरे की भीनी खुश्बू से रोम रोम महके है।
-Arjun Allahabadi