कैसा दौर आ गया साहब,,,
हर पल कुछ अलग हो रहा है,,,
हर आहट डरा रही है,,,
हर पल दिल रो रहा है,,,
हर रोज सूरज की किरण अब लाती नहीं उजाला,,,
हर पल किसी घर का "दीपक" अपनी लौ खो रहा है,,,,
ऐ जिन्दगी देने वाले,,,
क्यूँ नाराज है इतना इस जहाँ से,,,,,
तेरी नाराजगी का कहर हर कोई,,,
कांधो पर अपने, अपनों की लाशों सा ढो रहा है!!!
-Khushboo bhardwaj "ranu"