तुम और मैं...............
तुम शब्द हो मैं अर्थ हूं।
तुम शब्द हो मैं अर्थ हूं।।
तुम बिन सदा मैं व्यर्थ हूँ।।
में साज तो तुम गान हो।
मेरा अमिट अभिमान हो।।
मेरे बसाये घर की तुम ,
एक सर्वदा पहचान हो।।
जब दूर हो तो नरक है,
जब साथ तो हो स्वर्ग हो।
में हूँ सदा अपभ्रंश सा
तुम एक सती का दर्भ हो।
जब कोई पूंछे घर मेरा चलता
कैसे अनवरत है,
तो तुम कहोगी की मेरी आस्था
और मैं कहूँ की तुम घर की
प्राण हो।
तु साज भी, तू काज भी
तू ही समय, आगाज भी,
गर कोई सोचे आन में
तो में कहूँ की तू मेरा नाज भी,
तेरा हर एक संताप हूँ,
तेरी सदा में गर्द हूँ।
तूं है खुशी में मानता
तेरा सदा में दर्द हूँ।
तुम शब्द हो मैं अर्थ हूं।
तुम बिन सदा मैं व्यर्थ हूँ।।
सतीश ठाकुर ..............