Hindi Quote in Poem by सतेश देव पाण्डेय

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बहुत ललक था धन कमाने का!
उस धन से जीवन बनाने का!
ना जाने क्या–क्या देखे थे सपने!
पर सपने थे, कैसे हो सकते है अपने?
चलती रही सपनों में ही जिंदगी!
भागते रहे भुला के आज की सादगी!
दिन–माह–बरस कई गए बीत!
छूटते–बिछड़ते गए जो दिल से जुड़े थे मीत!
सम्पूर्ण समर्पण किया जिसको मन!
करते–करते धन का अर्जन बीत गया पूरा यौवन!
वंचित रहा वैभव, व्यर्थ किया धन पीछे अपना जीवन!
अंतिम सांसे ले रहा था जब ये तन!
किसी काम न आया वह संचय का धन!
रुकी थी सांसे बंद हुई थी धड़कन!
तन का शव में हुआ परिवर्तन!
होने लगी थी अपनों को देख कर घुटन!
कुछ पल के लिए ही होने लगा भार!
क्या कहना किसी को–यही है जीवन का सार!
फूंक दिया–मिट गई सारी साख!
अस्थियां भी जल कर हो गई राख!
(सतेश देव पांडेय)

Hindi Poem by सतेश देव पाण्डेय : 111691679
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