चलो महिला दिवस मनाते है ,
शुक्र है एक दिन ,
मौका ये प्राप्त ,
व्यथा सुनाते है |
कितना पाखण्ड है जहाँ ,
मान -सम्मान ,
सुरक्षा सब खण्ड- खण्ड है |
बाहर तो क्या जब, घर मे भी
सब सहती हुई बन्द हैं |
भविष्य तो केवल समाजिक व्यवस्था ,
प्रबन्ध है |
नही घर उसका कोई ,
यथार्थ , अपवाद किसी का ही सिक्का बुलन्द है | यह भी पुरूषो की अनुकंपा विचारो मे स्वतंत्र है |
बेटी , बहन, माँ , पत्नी मे,
खुद को बाँट दिया ,
की तलाश खुद के हिस्से की
तो जैसे अपराध किया |
-Ruchi Dixit