ख्याल बहुत हैँ मन मे पर कहने को जैसे,
एक शब्द भी है मेरे पास नहीं.....
मंज़र देखें हैँ मैंने.,. खौफनाक कई,
पर डर इन अस्पतालों सा था वहां कहीं नहीं...
मन मे हलचल रहती है अक्सर..... पर दिल मे बेचैनी...
दिल मे बेचैनी अब जैसी थी हुयी कभी नहीं..
इस अँधेरे मे मानो कुछ रूह...आस पास जैसे हों भटक रही....
सन्नाटे मे भी कई चीखें हो जैसे इस कमरे मे हो तेज़ गूँज रही....
खाली इन पड़े बिस्तरों पर,
जैसे तड़प रहे हों लोग कई....
ज़िंदगियाँ कुछ बोतलों मे हैँ सिरहाने खूटियों से इनके लटक रही...
ख्याल बहुत हैँ मन मे पर कहने को जैसे,,
एक शब्द भी मेरे अब पास नहीं....
लिखकर थोड़ा कुछ और बताऊँ तो समझो यूँ कुछ बस...शायद...
शायद जैसे कोरे पन्ने तो हों लिखने को मेरे पास कई...
पर कलम यहाँ कहीं किसी के पास नहीं...
कलम की अब किसी से आस नहीं .....
अब बस जैसे इस कमरे मे रात रही...
फिर कभी किसी से बात नहीं... फिर कभी किसी से बात नहीं
। ।
-Akash Saxena