हे वींणधरा मैय्याऽऽऽ, मेरे भावों में बस जाओ।.. - २
अलंकार आदि आभूषण करना, श्रृंगार रसों का वर्णन करना।।
निर्मल सुन्दर मधुरभाव रस,आकर के बरसा जाओ....! हे वींणधरा..
छन्द शास्त्र की उत्तम गुण बन,समास आदि रचनानुवाद हो।
काव्य धर्म से युक्त भगवती, ऐसी रचना कर जाएं।।
पढ़े-सुने हर इक मन को तुम,आकर के हर्षा जाओ....!हे वींणधरा..
लेख शब्द की अर्थ आत्मा,मन्त्र सदृश सब हो जाऐं।
रटे जो जिह्वा गान तुम्हारा,गहन भाव को पा जाए।।
सोई हुई युगों से जो मेरी वांणी,आकर उसे जगा जाओ....! हे वींणधरा..
-सनातनी_जितेंद्र मन