रात कुछ सुनी है सबब बिताने में
फिर भी कुछ दूरी करीबी हैं
चल तो बहोत कुछ रहा है ज़हन में
फिर भी होंठों पर चुप्पी लाज़मी हैं
सारा इंतज़ार थमा है सिरहाने में
फिर भी आंखों में एक कमी हैं
ये रात भी उदास है गुज़रने में
फिर भी मुक्कमल बहना मज़बूरी हैं
-Falguni Shah ©