गीत कहां से लाऊं
आंखें नम है
बातें कम है
गीत कहां से लाऊं भाई।
बंद सभी खिङ़की दरवाजे
सुख का सूरज रूठ गया है
संशय की लटकी तलवारें
मीठा मौसम छूट गया है
खन्डित आशा
बङ़ी निराशा
खुद को क्या समझाऊं भाई
कैसे गीत सुनाऊं भाई।
तीखी-तीखी धूप अहम् की
तन-मन को झुलसा जाती है
संवेदन की काली काया
राग भैरवी ही गाती है
रूठे अपने
टूटे सपने
कैसे रात बिताऊं भाई
कैसे गीत सुनाऊं भाई।
चालाकी की चौपङ़ फैली
प्यादे सारे हुए वजीर
भूख, गरीबी, लाचारी की
कहो कौन काटे जंजीर
झूठे वादे
ग़लत इरादे
क्या इतिहास लिखाऊं भाई
कैसे गीत सुनाऊं भाई।
डॉ पूनम गुजरानी
सूरत