"आज तो प्रभु मुझे बता ही दो
कब तक और किस-किस का कर्ज चुकाना है?
अपने हृदय के रक्त को आँसूओं में बहाना है।
आज तो प्रभु बता ही दो...
और कितना आँखों की नमी को छूपाना है?
किस-किस के लिए आँखों से आँसू आने हैं?
माँ से मामता का आँचल बस चाहा था...।
आँखों में आँसूओं की धार मिली।
पिता से स्नेह और रक्षा का दायित्व माँगा था,
लाचारी और बेवसी का परिणाम मिला।
पति से प्यार और सम्मान चाहा था,
क्यों नहीं हमेशा साथ मिला?
ससुराल में बहू का सम्मान चाहा था,
क्यों नहीं बहूरानी सा अधिकार मिला?
संतान से प्यार और सम्मान चाहा था,
क्यों फटकार और प्रतिकार मिला..।
दोस्तों से बस कुछ पल का साथ और सुकून माँगा था,
वहाँ भी सिर्फ आँसूंओं का सैलाब मिला।
प्रभु! आज तो हमें बता ही दो...।
क्यों और कब-तक किस किसके और कर्ज चुकाने हैं।
अपने दामन में आँसूओं के मोती कहो कब-तक और सजाने हैं।"
अम्बिका झा 👏
-Ambika Jha