प्रेम वेदना
नस नस में हो जो तरंगित
विरह वेदना से थकी - धूमिल,
तड़प , उन्माद औ' व्यग्रता के
ताप में क्षण क्षण पिघलता,
है कौन सी यह कामना
जो वश में करती भावना,
आह्लाद, उद्वेग, अधीरता
जो जगाती हो जिजीविषा,
मन कर रहा विद्रोह हो
बंधनों, मान्यताओं, रिवाजों से,
विरह अग्नि में जलता प्राण हो
ध्वस्त करता हो परम्परा को,
उद्घोषणा करे कांतिमय भाल जब
ऐलान होता हो इश्क़ का तब,
यह वेदना थी प्रेम की,
विरह अग्नि में तपते प्राण की।