•ख़याल
हां महज़ सिर्फ कुछ ख़याल हीं तो थे मग़र क्या ख़याल थे..!जिसमे तुम सिर्फ हमारे हों गये..,
अब मेहफ़िलों में ख़ुदको समेटता रहता हूँ कुछ यूँ टुटा हूँ कि ज़माने भर में नजारे हों गये..!
अधूरे रेह गये कुछ ख़्वाब जो थे तेरे और मेरे सहारे रात में सूरज दिन में सितारें सो गये..,
तुम गई हों जहाँ से तो कुछ यूँ उलझ गया में की सेहरा में संमदर किनारे हों गये..!
रातों के दरमियाँ फिर कभी नींद नसीब ना हुई कब्र पे रखे पथ्थर मीनारे हों गये..,
लिख-लिखकर कैसे बताऊ में की समझते थे जो मुझे ख़ुदा को प्यारे हों गये..!
मेहफ़िल-ए-ज़िक्र हैं तो क्या ही बताऊ मतला की रही जिंदगी गज़ल के सहारे हों गये..,
बेशक़ अश्को से यारी हैं मेरी सुननेवालों से सुना हैं लफ़्ज़ों से खामोश गुज़ारे हों गये..!
अक़्सर ढूंढता रहता हूँ तुमको दरमियाँ जितने भी शहर आये खँडहर सारे हों गये..,
जो ज़ख्म कभी भरते हीं नहीं थे "काफ़िया" गया हूँ मैखाने जब से मय-आशिक़ तुम्हारे हों गये..!
#TheUntoldकाफ़िया
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