हमारा साथ ऐसा, जैसे तुम बचपन से ही साथ रहे,
जब तुम मिले, मेरे गम धुले, मेरा मन फूलों सा खिले।
तुम आयी थी ठीक खुशबू की तरह मेरे जीवन में,
तुमने हरदम साथ दिया, लायी खुशियाँ जीवन में।
कितनी ही बार लड़े-झगड़े, कितनी बार हुई तकरार,
जाने कैसा बन्धन हमारा, ना इसमें कभी आयी दरार।
तू छोड़कर चला गया, मैं बेबस, लाचार और तन्हा रहा,
यहाँ भीड़ का मेला लगा, मैं भीड़ में भी अकेला हुआ।
तुमने 'दोस्त' कहा मैंने भी इसे दिल से ही स्वीकारा,
तुम यूँ ही डरती हो, मेरे तो सपनों में भी साथ तुम्हारा।
कुछ अरमान मेरे भी थे, जिनसे सदा तुम रही अनजान।
बस तुम समझ ना सके और मैं समझा न सका, गुरु!।।"
-Prem Nhr