सितारों वाली रात कहाँ;
हंसती हँसाती बात कहाँ;
बंद कमरे में कैद हो गये हैं
खुल्ले आसमान की रात कहाँ;
कोरोना से जब मीली तन्हाई
अब जुगनुओं की बारात कहाँ;
चार दिवारें बनी दुनिया मेरी
अब बहारों की सोगात कहाँ;
सहाय करने है तत्पर हर कोई
पर मीलने के वो ज़ज्बात कहाँ;