आज उतर जाने दे प्यार का सारा नशा
हद कर दी है मैने
वह भी कितनी !
रात-दिन आसमान को युं तकते रहना
ठीक भी तो नही
वह भी थक गया है
कल रात तो बोल भी ऊठा था
कह रहा था, सुन ओ पगली
पहले ही बहुत कुछ झेल रहा हूँ मैं
कितने सारे तारे, नक्षत्र, ढ़ेर सारे सूरज और कई चन्द्रमा
ऊपर से यांत्रिक यान भी कितने !
सारा कचरा भरा पड़ा है मेरे सिर पर
यह सब कुछ बरदाश्त कर लूंगा मैं, कर रहा हूँ
मगर मेरी जान !
तुम्हारी इक टक तकती ख़ामोश, सूखी, निश्छल आँखे !
बरदाश्त नही होती
बरदाश्त नही होती...
अनु.