स्मृतियां
१.
दालान पर खड़ी प्रतीक्षित दो आंखें,
हमारा बाट जोहती आंखें,
खादी के श्वेत वस्त्रों में सुसज्जित,
छड़ी लिए आराम से चलते हुए,
खड़ाऊ के खट खट से,
अपने आने की सूचना देते हुए,
शालिग्राम की पूजा करते हुए,
महाभारत की कथा सुनाते हुए,
हमारे मन आंगन में आज भी
वैसे ही तुम जीवित हो बाबा।
२.
निर्मल हंसी बिखेरते हुए,
बरामदे पर बैठकी जमाए हुए,
चाय की पुकार लगाते हुए,
जटिल विषयों को सरल बनाते हुए,
साहित्य का इतिहास बताते हुए,
सन्डे को फोन डे बनाते हुए,
लंबे लंबे खत लिख कर
हमारा हौसला बढ़ाते हुए,
स्नेह से गले लगाते हुए,
हर समय चट्टान सदृश
हमारी रक्षा करते हुए,
नाना - तुम्हारी याद आती है।