जब आप प्रमाण देते है तब आप अंदर ही अंदर तूटते है।प्रमाण तभी देना पड़ता है जब आपके अपनो को आपसे ज्यादा आप के प्रमाण साबित करते हुए शब्दों पे विश्वास हो। यह भी केवल एक क्रिया है। उन्हें समज तो उतना ही आएगा जितनी उनकी सोच है। वह अपनी बुद्धि के हिसाब से ही आपकी बात का तर्क लगाएंगे। और तब आपको समज में आएगा कि अपने अपना कीमती समय गवा दिया।
-Viraj Pandya