सब कहते है दिमाग में कुछ खिचड़ी बना रही है। साफ दिल की बनो कुछ भी बात हो हम से कहो !
पर कौन जाने एक कवि की बात जुबां से लफ़्ज़ों के रूप में नहीं
दिल से कविता के रूप में निकलती है
लफ़्ज़ों से भले ही दिल की बात बयां कि जा सके
लेकिन कागज पर तो पूरा दिल ही उतारना पड़ता है।
-Aastha Rawat