वैसे तो में भी नहीं जानती; मगर
ख्वाबों की कोरी क़िताब लिख बेठी हू...
खिलना नहीं मुजे यूं बागो के बीच
इसीलिए दलदल में कमल खील बेठी हू...
ज़माना चाहे कितने भी ताने मार ले
में तो अब पत्थर रहना सीख बेठी हू...
ख्वाबों कि किताब खोलकर क्या करू
सपना तो दूर; खुद ही को झेल बेठी हू...
-Parmar Jagruti