पूरे कमरे में अंधेरा पसरा था बस दरवाजे की सुराख से रोशनी अंदर आ रही थी। उसे रोशनी से चिढ़ हुई उसने मुंह फेर कर चेहरे को चादर से ढक लिया। जाने क्यों वह कहीं जाना ही नहीं चाहता था किसी से बात नहीं करना चाहता था बस यूं ही पड़े रहना चाहता था अकेला।
आखिर किसे उसकी परवाह है जो वह किसी की परवाह करें उसके जीने या मरने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। यही सोचता हुआ वह सोने की कोशिश कर रहा था पर नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी उसकी आंखों के सामने चलचित्र की भांति बीते हुए कई दृश्य गुजर रहे थे।
कभी मां का चेहरा नजर आता तो कभी अनुशासन पर डांटते फटकारते पिताजी, कभी दुलार करती छोटी बहन तो कभी मनुहार करती बड़ी बहन और बड़े भाई वह तो जैसे सख्त पत्थर बन चुके थे।
बड़े भाई का ख्याल आते ही उसके मन में एक विचित्र सी कड़वाहट भर आई।उनका नाम ले लेकर परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों ने न जाने उसे कितनी बातें सुनाई थी। वैसे लगता था कि उसके बड़े भाई ने कभी जिंदगी जी ही नहीं लेकिन उनके इस कारनामे का गुणगान करते हुए लोगों ने उसका भी जीना मुहाल कर दिया था।
बड़े भाई से कटा कटा रहने लगा था। अचानक उसे याद आया जब दूसरे शहर नौकरी के लिए आने लगा तो स्टेशन छोड़ने आए बड़े भाई ने कहा था " रतन तू कभी मेरी तरह मत बनना"
जिंदगी में पहली बार उसे अपने भाई पर दया आई थी। अचानक ही सोचते हुए उसे विचार आया मैं भी तो भैया की तरह ही बनता जा रहा हूं जीना भूल चुका हूं। भैया और मैं सिर्फ एक ही बात पर तो सहमत हैं कि मुझे उनकी तरह नहीं बनना है लेकिन मैं वह काम भी ना कर सका और अब हार चुका हूं।
अचानक उसे मास्टर जी याद आ गए वो कहा करते थे "मन के हारे हार है मन के जीते जीत, रतन अपने मन को इतना मजबूत रखो कि वह कभी हार ना माने" ये बात सोचते ही अचानक उसके शरीर में स्फूर्ति जाग उठी उसने चादर एक ओर पटकी और दौड़कर दरवाजा खोला, पूरा कमरा रोशनी से नहा गया और उसका मन भी मानो उत्साह से भर गया। इस एक पल में उसने निश्चय कर लिया कि वह कभी अपने मन को नहीं हारने देगा कभी हार नहीं मानेगा हर परिस्थिति का डटकर सामना करेगा।
आज रतन अपने मन को जीत चुका था।
#विजय