My Wonderful Poem..!!!
मेहनत की सुई से
सफलता के मोतियों को,
आप ज़िन्दगी के
धागों में पिरो सकते हैं ..!!
"अवसर" और "सूर्योदय"
दोनों एक समान ही होते हैं,
अगर देर से उठे तो
इन्हें आप खो भी सकते हैं..!!
इम्तिहान के लिए ही
इन्सानी ज़िंदगी हमें मिली है,
देर तो दूरी-ओ-मजबूरी
व बद-क़िस्मती की ज़नेता है..!!
फिर क्यूँ ना हम देर से
दूरी बनाकर आज़मा के देखें,
यक़ीनन रब सब देखत
सुनत जानत व परखत भी है..!!
क्यों ना फिर प्रभु दरबार
में "सूर्योदय" के “अवसर”से
प्रार्थना के बल से सजदो
के फ़लसफ़ों को हासिल किया जाएँ।
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