# विषय .मित्रता *
#कविता **
मित्रता के नाम ,पर तू कंलक निकला ।
हमारी धरती को ,हटपने वाला शैतान निकला ।।
याद रख तू हमको ,कभी आँख नहीं दिखा पायेगा ।
हमारे शुरवीर सैनिकों ,के हाथ मारा जायेगा ।।
तू हमें कमजोर मत ,समझना अपने मस्तिष्क में ।
तेरे पर विश्वास किया ,वो हमारी भुल थी ।।
पर तेरी हेकंडी ,एक पल में छूँमतर हो गयी ।
अपनी विस्तारवादी ,नीति से उल्लू मत बना ।।
भारत की सेना ,तेरे दांत पल में खट्टे कर देगी ।
विश्व तेरी चालाकी ,को अब समझ गया ।।
-Brijmohan Rana