(माँ की ममता)
कैसा था नन्हा बचपन वो
माँ की गोद सुहाती थी
देख देख कर बच्चो को वो
फुल नहीं समाती थी
जरा सी ठोकर लग जाती तो
माँ दौड़ी हुई आती थी
जख्मो पर जब दवा लगाती
अंशु अपने छुपाती थी
जब भी कोई जिद करते तो
प्यार से वो समझाती थी
जब जब बच्चे रूठे उससे
माँ उन्हें मानती थी
खेल खेलते जब भी कोई
वो भी बच्चा बन जाती थी
सवाल अगर कोई ना आता
टीचर बनके पड़ती थी
सबसे आगे रहें हमेशा
आश सदा ही लगाती थी
तारीफ अगर कोई भी करता
गर्व से वो इतराती थी
होते अगर जरा उदास हम
दोस्त तुरंत बन जाती थी
हंसते रोते बिता बचपन
माँ ही तो बस साथी थी
माँ के मन को समझ ना पाए
हम बच्चो की नादानी थी
जीती थी बच्चो के खातिर
माँ की यही कहानी थी