#झगड़ा
झगड़ा के अनेक रूप होते हैं, उनमें से कुछ आपके सामने रखता हूं।। (कविता के रूप में)
(झगड़ा)
झगड़ा को झगड़ा कहने के, पीछे है एक राज
झगड़ा के बिना जिंदगी में, होता नहीं साज।
जब हो कोई झगड़ा तो चाहे, शत्रु हो, या मित्र
झगड़े में तो बस गिरती है, एक दूसरे पे गाज।।
(गरीबी में झगड़ा)
रंक का जी पाना, इस दुनिया में है मुश्किल
सिर्फ चाहने से होता नहीं, कुछ भी है हासिल।
यदि प्यार से न पा सके, तो झगड़कर पाओ (क्योंकि)
ना पा सके तो तुम नहीं हो, जीने के काबिल।।
(घर का झगड़ा)
आज की घड़ी में हो, गए हैं झगड़े आम
हर घर में होते झगड़े हैं, दो भाइयों के नाम।
अरे! आपसी झगड़ों में कभी, घर ना मिटाना
झगड़ों को भूलकर बनो, कलयुग के लखन राम।।
(राजाओं का झगड़ा)
युध भूमि में होते हैं युद्ध, वीर रस के साथ
करते हैं राजा शत्रु से, रण में ही दो दो हाथ।
कभी पीठ पीछे राजागण, करते नहीं हैं बार
निज वीरता के साथ ही, वो बनते प्रजानाथ।।
(नेताओं का झगड़ा)
नेताओं में कुर्सी के लिए, होता है विवाद
इस झगड़े में उछालते इक, दूसरे पे खाद।
ये झगड़ा हो जाता है, छोटी छोटी बात पर
इस झगड़े से पहले कभी, होता न शंखनाद।।
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