अधूरे सपनो के साथ पूरी ज़िंदगी जी रहा हूँ फटे हुए अरमानो को कोशिश के धागों से सी रहा हूँ मेरी तन्हाइयों में अक्सर आवाज़ देती मेरे सपनों को शख्सियत मेरी। ये गम-ए-जाम कड़वा फिर भी इसे पी रहा हूँ मुक़्क़म्मल होकर एक दिन खुद से मिलूंगा ज़रूर मुश्किल है....... पर जी रहा हूँ ।