मैं ही हूं
मैं हूं हां मैं ही हूं
एक बेटी एक पत्नी
एक बहू एक मां
एक सास
मैं ही तो हूं
मैं हूं हां मैं ही हूं।।
पर इन सब से पहले एक स्त्री हूं
कोमल ह्रदय की
सुकोमल भावनाओं की
अनंत इच्छाओं की
मैं ही तो हूं
मैं हूं हां मैं ही हूं।।
रिश्तों के बोझ को
ढोती हुए
संस्कारों के बंधनों को
जकड़े हुए
रीति रिवाज के आवरण को
ओढ़े हुए
मैं ही तो हूं
मैं हूं हां मैं ही हूं।।
सबकी परवाह करती हुई
सबकी इज्जत करती हुई
सबकी इच्छाएं पूरी करती हुई
मैं ही तो हूं
मैं हूं हां मैं ही हूं।।
याद है कभी पूछा हो जो मुझसे
कैसे जीना चाहती हो जीवन को
कैसे रंगना चाहती हो सपनों को
कैसे सोचा है अपने जीवन को
मैं ही तो हूं
मैं हूं हां मैं ही हूं।।
कभी पूछा मुझसे
कैसे भुलाया अपने को
कैसे तोड़े सपनों को
कैसे भूली अपनों को
मैं ही तो हूं
मैं हूं हां मैं ही हूं।।
हाड़ मांस की बनी हुई
जिंदा हूं पर मरी हुई
जीत कर भी हारी हुई
अपनों के बीच भी पराई हुई
मैं ही तो हूं
मैं हूं हां मैं ही हूं।।
डॉ. सोनिका शर्मा