#अमंगल
मंगल_ अमंगल बस्ता सोच में?
कभी न होता विजेता के बस्ते में।
हर नयी राह होती एक एक ठोकर में?
जो तू मिटा सके भेद मंगल मंगल में।
सिर्फ समय के अनुसंधान में,
सूरज डूबता हरशाम में।
एक नई सुबह की उम्मीद में,
हर अंत की नई शरुआत में।
निश्चिंत है मंगल मुश्किलों में
जो हटा सके अमंगल अपनी सोच से।
Mahek parwani