ये ज़िंदगी का फ़लसफ़ा
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-ज़रा ज़रा महक तो ले ,ज़रा सा तू बहक तो ले
ये ज़िंदगी का फ़लसफ़ा ,ज़रा इसे समझ तो ले -
ज़रा सी आँख खुल गईं तो ज़िंदगी सफ़र लगी
ज़रा सी मुंद गईं पलक तो ज़िंदगी ख़बर लगी
न जाने कितने मुखड़े हैं ,न जाने कितने दुखड़े हैं
कभी पालक पे अश्रु हैं कभी है प्यार की नमी
ज़रा ----------
कहाँ से आए हैं सभी ,चले कहाँ को जाएंगे
जो प्यार है दिया -लिया उसीमें झिलमिलाएँगे
ये दुःख औ सुख के वृत्त में घिर रहे हैं हम सभी
जो मुस्कुराके बोल लें ,उसीकी है विजय हुई
ज़रा ज़रा ---------
मैं ज्योत स्नेह की बनूँ ,अँधेरा दूर कर सकूं
मैं अश्रु पोंछ दूँ सभीके मन के घाव भर सकूँ
जो दे दिया प्रकृति ने ,उसे भी मैं संभाल लूँ
जो कंटकों में हो घिरा ,उसे भी मैं निकाल लूँ
ज़रा ज़रा ---------
डॉ.प्रणव भारती