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Pranava Bharti

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उस वीराने में

जुगनुओं की चमक है

जो मुझे दिखा देती है

अंधेरों में राह--

मैं लक्ष्य तक पहुँचने के लिए

उनकी आँखों में

लेती हूँ झाँक - - -


डॉ प्रणव भारती

-Pranava Bharti

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मैं प्रकृति
देती मुस्कान तुम्हें
मन भरें स्नेह से
प्यार से, दुलार से
न हो द्वेष
सुंदर हो परिवेश
जान लो मुझे
पहचान लो मुझे
मिलो सबसे ऐसे
एक ही पिता की हों संतान
जीवन एक वरदान!!

डॉ प्रणव भारती

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स्नेहिल सुभोर 🌷सर्वे भवंतु सुखिनः 🙏🏻

स्नेहिल भोर मित्रो

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भोर का नाद !!

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सपनों की दुनिया से निकल

जूझे हैं हम सब

दिशाओं के आँगन में

समेटे हैं नाद

चहचहाहट से

गोधूलि के विश्राम तक

लगी सीढ़ियों पर

चलते, गाते रहे हैं

गुनगुनाते, मुस्कुराते

पार करते रहे हैं

चीरते रहे हैं

वक्षस्थल वर्जनाओं के

बंजर भूमि में

रोपते रहे हैं

अनगिनत विशालकाय वृक्ष

जिन पर बने घोंसले---

राहगीरों ने ठिठककर

सुखाया है ताप

हम सबने बचाया है

स्वयं का व्यक्तित्व

धरा की सौंथी महक ने

अंतर में रोपा है कबीर

हम कैसे बन गए शातिर?

ये दौर प्रहारों के

रहे हैं आते - जाते

इतिहास के पन्नों पर

भरे पड़े हैं खाते

नीति के नाम पर

अनीति के चक्र

घूमते रहे हैं सदा

सुनी न हो रणभेरी

न चलती देखी हो गदा

मन की पाषाण भूमि

बन जाती है बिहरन

करने लगती है प्रश्न

उलझने लगते हैं

पेचीदा रास्ते जो

थे सीधे - सादे

हम सबके वास्ते

चुप्पी मत धरो

उठो, तय करो पुन:

उन्हीं रास्तों को

इस बार मार्ग बनाने हैं

पक्के

युवा सपनों की दृष्टि

जमी है तुम पर, हम पर

हम सब पर

आओ पकड़कर हाथ

बनाते हैं एक संग एक

संगठित घेरा

संभालेंगे उसको मिल

देखो, नन्ही आँखों में

खिलने लगा

नया सवेरा !!


स्नेहिल भोर

डॉ प्रणव भारती

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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर
विश्व की सभी महिलाओं के लिए 💖

संवेदन के तट पर-मैं
(नारी )

मैं जिधर भी चल पड़ी हूँ मार्ग खिल खिल से गए हैं

जाने कितने बंध मुझको पवन से खुलते लगे हैं

मैं पथिक हूँ इस धरा की चल रही कितने युगों से

पाँव में छाले पड़े तो क्या हुआ विचलित नहीं हूँ------

हृदय की जिजीविषा कुंदन बनी है, तप रही है

श्वाँस की तपती धरा है जिसमें बाती जल रही है

और मैं उजले सहर की एक उजली किरण बनकर

सब अँधेरों को सिरहाने रख खड़ी मुस्का रही हूँ

काल से कवलित नहीं हूँ - - - - -

शेष सपने हैं तो क्या है
किसके सब पूरे हुए हैं

पर्वतों पर दृष्टि डालें लक्ष्य तो अब भी तने हैं

चाँदनी की ओट लेकर आवरण में वे पले हैं

मैं धरा की तीर्थ सी
मन की परीक्षा कर रही हूँ

सच कहूँ, विगलित नहीं हूँ-----

डॉ.प्रणव भारती

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माँ पार्वती सभी मातृशक्तियों में अपना प्रेम, नेह, आशीष बरसाएँ🙏🏻विश्व की समस्त शक्तियों को नमन,वंदन,सत्वन🙏🏻 सर्वे भवन्तु सुखिनः 🥰

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प्रिय साथियों

स्नेहिल नमस्कार

भारत के इतिहास में 26 जनवरी की ऐतिहासिक पावनता में संचित है मनीषी जननायकों, बुद्धिजीवियों एवं विधि-विशेषज्ञों का गहन चिंतन, विभिन्न धर्मों व दार्शनिक विचारधाराओं में निहित आध्यात्मिक मानवीय तत्त्वों का उत्कर्ष, भारत की गौरवशाली साँस्कृतिक परम्पराओं से अदम्य ऊर्जा लेकर विश्व में महान राष्ट्र के रूप में भारत के निर्माण का स्वप्न, असंख्य पीढ़ियों तक भारतवासियों की आकांक्षाओं, आशाओं, सपनों एवं संकल्पों का प्रकाश-उदगम, भारतवासियों के मौलिक अधिकारों तथा निर्देशक सिद्धांतों व इनके संरक्षण का दुर्लभ दस्तावेज़ - भारत का संविधान।
1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के महज़ ढाई वर्ष बाद, 26 जनवरी 1950, को हमारा लोकतंत्र, भारत गणतंत्र स्थापित हुआ, जो सभी भारतवासियों के सहयोग से सतत उन्नति की ओर अग्रसर रहा है।

सभी भारतवासियों और प्रवासी भारतीयों को इस पावन राष्ट्रीय पर्व पर हार्दिक मंगल कामनाएं करते हुए आशा करती हूँ कि गणतंत्रदिवस की सुहानी सुबह का आलोक सभी के जीवन में नया प्रकाश, नई ऊर्जा, नया ओज व तेजस्विता भरे और स्वतन्त्र-शांतिमय वातावरण में सभी को अपने मन चाहे सपनों को साकार करने के ऐसे अवसर प्राप्त हों जिनसे देश का गौरव उत्तरोत्तर बढ़ता जाए।

जय हिन्द!

डॉ. प्रणव भारती

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राम डोर से बंध गए , राजा रंक फकीर ।
राम प्रेम की हैं ध्वजा,राम धीर,गंभीर।।

सभी मित्रों को, देशवासियों को इस भव्य, ऐतिहासिक दिवस की स्नेहपूर्ण बधाई व मंगलकामनाएँ 💐💖💐

जय श्री राम
डॉ प्रणव भारती

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सबसे प्यारे मित्र
शब्द
मित्रता करके तो देखें💐

-Pranava Bharti