है खुदा,
पता है कि तुजे अब भी हमारी फिकर तो रहती है,
पर क्या करे,हम इतने खुदगर्ज़ बन गए,
की फिरभी तुजसे कुछ ना कुछ गुँजाइसे तो रहती है!
पता है कि तूने बिना माँगे बहुत दिया,
बेशक़, बेहिसाब, फ़िरभी कुछ ना कुछ सुनता रहा,
फिरभि तुजसे कुछ ना कुछ मन्नतें तो रहती है!
इस मतलबी दुनियामे तू ही एक सहारा है,
रास्ता भटके समंदरके उन पंछियों का तुहि किनारा है,
फिरभि तुजसे उनकी कुछ ना कुछ शिकायतें तो रहती है!
बेरहम से हो गए तेरे यूँ कुछ बच्चे,
मंदिर,मस्जिदमे जिन्होंने बाँट के रखा तुजे,
फिरभि उन लोगोंकी तुजसे कुछ ना कुछ ख्वाईशें तो रहती है!
आखिरमें तो किसीकी नही चलती तेरे सामने,
तेरा दस्तूर ही कुछ यूं छाया सबके सामने,
क्योकि तेरी बनाई हर कहानियों के पीछे कुछ ना कुछ हकीकत तो रहती है!