रंगीला सावन
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बेरंग से बिखरते मेरे मन को
खुद में रंगने लगा यह सावन
मौसम की खुश्की पसन्द आने लगी थी
फुहारों में फिर भिगोने लगा यह सावन
उम्र के बढ़ते इस पड़ाव पर
फुहारों से परहेज रखा था हमने
बचपन के खेल वह बारिशों सँग
फिर से खिलाने लगा यह सावन
झूले पड़े बागों में कोयल कुहकुहाने लगी
यादें पहली बारिश की फिर कुलमुलाने लगी
आने वाला है राखी का त्योहार फिर से
मायके की याद दिलाने लगा यह सावन
सीलन से भरे दिन ले आया है।
भीगा सा मन है तन अलसाया सा है
ढांप ली है सूरज की तपन बादल ने
मखमली उमंग भरने लगा यह सावन
भूल जाउँ मैं उम्र को एक पल
मन छई छपाक फिर करने लगा है
छा रहा सुनहरी सा खुमार मन पर
सधी मेरी चाल बहकाने लगा यह सावन
बहकने का इल्जाम मेरे सिर न धरना
कसूर मौसमी बयार का है सारा
मेरे मन के सारे तारों को छूकर
मल्हार की तान छेड रहा यह सावन
विनय...दिल से बस यूँ ही