# संकट
ईश्वर ने वरदान दिया था ,जीने का सामान दिया था |
धरती पर सब रहें खुशी से ,सुंदर ये वरदान दिया था |
किन्तु नहीं समझा है तुमने उसका ये वरदान,
सब कुछ तोड़ा-फोड़ा है , कैसी उसकी संतान ?
आज सुहानी इस धरती पर छाया संकट है,
बना दिया बेनूर इसे ,ये अपना ही हठ है |
कभी सुनीं न चीख़ें उसकी ,अत्याचार किया भरपूर ,
आँसू कभी न देखे उसके ,खुद को किया सदा मगरूर |
अब देखें और पहचानें ,यह कैसी करवट है ?
आज मेरे बागीचे में कुछ तितली आईं थीं,
एक-एक कर उड़ीं पुष्प पर वो इठलाईं थीं |
मेरा मन भी झूम उठा था जब देखा उनको ,
पीछे-पीछे जा पहुँची मैं , वो घबराईं थीं |
पूछा एक प्रश्न गंभीर,चुभा हृदय में जैसे तीर ,
क्या हम तुमको धरती पर अच्छे न लगते?
प्रकृति के ये सारे आलम क्या कुछ न कहते ?
ईश्वर ने संज्ञान किया था ,तुम्हें अधिक सम्मान दिया था ,
इसीलिए हो गया कठिन सब ,न है अब आसान |
बहुत हो गया ,समझ सकें तो यह क्या आहट है ,
भोर उजाले की देती मानव को दस्तक है | |
डॉ. प्रणव भारती