Hindi Quote in Poem by Pranava Bharti

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# संकट 
ईश्वर ने वरदान दिया था ,जीने का सामान दिया था | 
धरती पर सब रहें खुशी से ,सुंदर ये वरदान दिया था | 
किन्तु नहीं समझा है तुमने उसका ये वरदान,
सब कुछ तोड़ा-फोड़ा है , कैसी उसकी संतान ?  
आज सुहानी इस धरती पर छाया संकट है,
बना दिया बेनूर इसे ,ये अपना ही हठ है |  
कभी सुनीं न चीख़ें उसकी ,अत्याचार किया भरपूर ,
आँसू कभी न देखे उसके ,खुद को किया सदा मगरूर |  
अब देखें और पहचानें ,यह कैसी करवट है ?
आज मेरे बागीचे में कुछ तितली आईं थीं, 
एक-एक कर उड़ीं पुष्प पर वो इठलाईं थीं | 
मेरा मन भी झूम उठा था जब देखा उनको ,
पीछे-पीछे जा पहुँची मैं , वो घबराईं थीं | 
पूछा एक प्रश्न गंभीर,चुभा हृदय में जैसे तीर ,
क्या हम तुमको धरती पर अच्छे न लगते? 
प्रकृति के ये सारे आलम क्या कुछ न कहते ?
ईश्वर ने संज्ञान किया था ,तुम्हें अधिक सम्मान दिया था ,
इसीलिए हो गया कठिन सब  ,न है अब आसान | 
बहुत हो गया ,समझ सकें तो यह क्या आहट है , 
भोर उजाले की देती मानव को दस्तक है | | 

डॉ. प्रणव भारती   

Hindi Poem by Pranava Bharti : 111531687
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