ये चिल्लाने का नहीं
चुपचाप डिजिटल
होने का समय है
कहती है जामुन के पेड़ पर
कुछ कुतरते हुए
गिलहरी
गलत उच्चारण पर
टोकती है
दसवीं पास पत्नी
अपने प्रोफ़ेसर पति को
रसोईघर से
काम वाली बाइयाँ
सीख रही हैं
ऑनलाइन कम्प्यूटर चलाना
भरेंगी वे भी आगे
आवेदन पत्र
बच्चे पढ़ते-पढ़ते
सीख रहे हैं हिडेन मैसेज
भेजने की कला
अपने मित्रों से
घायल वक्त जुटा रहा है
कलपुर्जे
करेगा असेम्बल रोबोट जल्द ही
एक नहीं
छोटे-बड़े कई-कई किस्म के
सभी के लिए
पत्नियाँ बिना रूठे
सीख रहीं हैं
अपनी बात ढंग से कहना
उन्हें डर है अगर
वे रूठकर गयीं मायके
तो घर में आ जायेगी
प्यारी-सी रोबोटिक पत्नी
जिसमें भरा होगा
कूट-कूटकर सेवाभाव
रोबोटिक वीबी जानती होगी
आम को आम नहीं
इमली भी कहना
पति के अनुसार
मोबाइल में सिमटते जायेंगे
डॉक्टर,टीचर औऱ परचूनी की दुकानें
कहता है
खिड़की से झाँकता हुआ
समय का एक
टुकड़ा
आदमी बनता जायेगा
इलेक्ट्रोनिक जिन्न के हाथों की
सभ्य कठपुतली
आने वाला वक्त
भूलता जाएगा
खुलकर हँसना और रोना |
-कल्पना मनोरमा
19.7.2020