रेत कुछ सिखाता है।
दूर-दूर तक चांदी सा
जो चमक रहा है;
मुट्ठी में भरना चाहूं
पर यह निकल रहा है!
हवा भी
इन्हें उड़ा रही है
जरा देखो तो इन्हें भी
यह हमें हर फूंक में
बदलना सिखा रही है !
कोई ना इसकी ठहर
ना ही इसका कोई ठिकाना
जहां मिल गया ठहराव
वही जिंदगी बिताना !
तपता है रोज ऐसे
जैसे जलने की हो बना,
जहां पर बसते हैं
सिर्फ कांटे
पर दर्द-ए-जख्म नहीं है बांटे!
रहते हुए भी तनहा
इनको नहीं है गंम
इनकी खूबसूरती है
क्या कम !
जिंदगी भी कुछ ऐसी है यारों
रेत सा सब बदल रहा
वक्त भी सिखाता हमें
यूं ही तेज चलना
आज यह रेत है जो ,
चाहे जिंदगी को बस बदलना !
Arjuna Bunty.