हास्य कविता ..
कभी कभी मेरे दिल ,में ख्याल आता है ।
ये कैसा जाल , मेरे लिए बिछाया गया है ।।
मैं पहले कुंआरा ही ,ठीक था यारों ।
धर में हिटलर को , मेरे लिए बिठाया गया है ।।
कि तुमसे बात भी ,करना मेरी शामत है ।
ये बाँसी भात ,सड़ी दाल है मेरे खातिर ।।
ये बात तुमको बताना ,मेरी कयामत है ।
धर में रणचंड़ी को , मेरे लिए बिठाया गया है ।।
कि बजती है खतरे ,की धंटीयाँ कानों में ।
मुँह पर मेरे खातिर ,ताला लगा दिया है ।।
तुम्हारे साथ मेरा ,जंग छिड़ गया है ।
पड़ौसी बैठे हुए ,सुन रहे है मकानों में ।।
फरमाईशों की लिस्ट ,देख कर बुखार चढ़ता है ।
हर रोज नया ,फरमान मुझे मिलता है ।।
फरमाईशों को पुरा करते ,थक गया हूँ यारों ।
किसी हसीना की तरफ ,निगाह डाली तो शामत आती है ।
खुदका मुँह छुपाता ,मैं रहा हूँ यारों ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।।