क्षमा प्रभु
आज ये कैसी विडम्बना आई है, एक तरफ कुंआ तो दूजी ओर खाई है।
मानव आज अपने ही घरों में कैद हुआ, पुरी दुनिया से है आज डरा छुपा हुआ।
हमने अपने किन कर्मों की सजा पाई है, अपने ही हाथों हमने ये आग लगाई है।
पुरी दुनिया में है मौत का तांडव पसरा हुआ, एक छोटे से विषाणु के आगे, पुरा विज्ञान है झुका हुआ।
हे प्रभु, हमारे पापों को अब क्षमा कर, और पुरी दुनिया पर अपनी दया दृष्टि कर।
एक नन्हें से वायरस ने यूँ हिसाब कर लिया इस धरा को दिए हर जख्म का इलाज कर लिया।
अब भी वक्त है सम्हल जाओ यारों,इस प्रकृति को और न तड़पाओं प्यारों ।
ये माँ है अपने बच्चों की हर गलती को सह जाती है,
पर जब अपने पर आती है तो फिर उसके आगे विज्ञान की भी कहां चल पाती है।
प्रज्ञा चांदना