हर खंड में जब सब खूब धूम मचाते थे । ख़ामोश सी लगती है अब दीवारे वे, अनचाही चुप्पी सी छा गई है वहाँ, हर सुबह चहचहाट होती थी जहाँ। सुनी हो गई विद्यालय की बगिया, राह तके है सावन की अँखियाँ। न जाने कब बीतेगा ये पतझड़, मायूस है माली ये सब, न जाने कब ख़ुश्बू से फिर से महके का विद्यालय। every teacher missed their kids .