क्या मस्त नींद आ रही होती है सुबह को😴 और एक बम विस्फोट होता है ,हमारे कान के पास ,अजी सुनते हो दूध लेने नहीं जाना है क्या?
सुनकर ऐसा लगता है कि जैसे हमारी सरकार का तख्ता पलट गया है ।
हम समझ जाते हैं कि आ गये हनुमान लंका उजाड़ने ।
एक और असफल कोशिश करते हैं सर से पांव तक चादर खींच कर निद्रा देवी की बहिंयो में झूला झूलने की।
पर हाय री फूटी किस्मत, श्रीमती सर्र से पलक झपकते ही हमारा तन झांकू वसन (चादर) खींच कर हमें निंदिया रानी की बाहों से उसी पलंग पर ला पटका, जिस पर हम सारी रात निद्रा देवी के साथ भिन्न-भिन्न आसनों में ब्रहमांड की सैर करते रहे ।
नींद हमें बहुत प्यारी है, हम कहीं भी टिककर सो सकते हैं चाहें वह छुन्ने खाँ का बदबुआता मैला कुचैला कंधा हो या हुस्न-ए-मलिका*****का महकता गमगमाता बाजू हो ।
एक बार तो हम किसी की शादी में खाने के इन्तज़ार में ही सो गये, लोग बाग ऐसे बेफिक्रे निकले कि खा पीकर मुँह पोंछ पांछ कर सोने निकल लिए,जब हमारी भूख से कुलबुलाती अंतड़ियों ने खुद का फंदा बनाकर हमें निद्रा देवी की गोद से नीचे ला पटका तो हम हड़बड़ाकर उठ बैठे ।
आसपास पसरे नाक बजाते भिन्न-भिन्न प्रकार की गैसों का मिश्रण छोड़ते सज्जनों से बचाते बचाते भोजन की तलाश में एकला चलो रे की तर्ज पर चल पड़ा ।
खैर कन्या के पिता बहुत ही भले व्यक्ति थे, उन्होंने बड़े आदर सम्मान के साथ मुझे घर के अंदर ले जाकर भोजन कराया, नहीं तो आप जानते ही हैं शादी, बारात में जाने वाले और जमकर नाचने वाले को यदि वह स्वादिष्ट मसालेदार खाना न मिले तो सुबह को उसकी हालत क्या होती है, खासतौर पर तब, जब यार दोस्त छेड़ छेड़ कर बताते हैं कि वाह भाई वाह, मटर, पनीर तो बहुत ही लाजवाब था या कोफ्तों का तो जबाब ही नहीं था ।सुन सुन कर यही इच्छा होती है कि हे ऊपर वाले!क्या तू एक बार फिर से नहीं वही नजारा दिखा सकता है?
इस नींद ने क्या क्या गुल नहीं खिलाये ?
एक बार का किस्सा सुनायें, हम जा रहे थे इलाहाबाद, उस समय हमारे अंदर भी शौक या कहें जुनून चर्राया था कि कुछ बन के दिखाना है ।बहुत लफंडरीगीरी कर ली, बप्पा की पनेठी और अम्मा जी की बद्दुआएं खा खा कर सच्ची में जी उकता गया था ।बना लिया पिलान, और अपने एकमात्र लंगोटिया यार के साथ पहुंच गए स्टेशन ।
ट्रेन लेट थी, रात के ग्यारह बजरहे थे, आखों में हमारी प्यारी निद्रा देवी के आगमन के शुभ संकेत मिल रहे थे ।
मित्र हर संभव प्रयास कररहा था हमें जगाये रखने के लिए । कभी पानी के छींटे मारता, कभी कुल्हड़ वाली चाय बेचारा ला के पिलाता ।
खैर उसकी किस्मत अच्छी थी कि ट्रेन आ गयी ।
हम लतियाते ,धकियाते किसी तरह डिब्बे में घुस ही गये ।
वहां भी एक सुन्दरी के कंधे से सर टिकाकर सो गये ।बबाल मच गया ।
शेष फिर कभी मेरे यारों