पहला इश्क़,
एक मुद्दत से मेरा इश्क़ खामोश पड़ा था ।
जैसे एक ख्वाब आँखों से ओझल हो रहा था ।
कोई दर्द था, या दवा थी ?
कोई रेत थी या दरिया था ?
हकीकत कुछ और थी, वो सोच थी ।
एक नई राह थी, सुहाना एक दौर था ।
एक सोच ऐसी मिली हमे, उसे इश्क़ बताया गया हमे,
फिर उसी इश्क़ के दरमियाँ, ख़ुदा दिख़ाया गया हमे ।
इन बदलते मौसमो में, कई फूल खिले, मुरज़ाये भी,
वो इश्क़ था या फूल था, कल जिसने महकाया हमे उसकी महक आज भी है मेरे जहन में सारे इत्रो की महक फीकी थी उसके सामने जो अकसर मुझे उसकी यादों से महेका जाता था !
वो चाँद जैसी गज़ब थी, उसकी आँखों में अदब थी ,
ये क्या जादू था चला हुआ, उसके किरदार में कि हम हम ना रहे।
उसकी आँखों का नशा हुआ, नशा हुआ या गुमाँ हुआ ?
उस ख़्वाबसे मुझे प्यार हुआ, बातो बातोमें ख़ुदा हुआ ।
उसकी गर्म सांसो की आहट को, दूरसे पहचानता में ।
वो चले साथ किसी दूर जगह, तो नया मकाँ बसाता में ।
फिर एक दिन वो मकाँ गया, पर्दा ज़मीर से चला गया,
वो कली नही, जो महक रही थी, भवरा था जो चला गया ।
पहले इश्क़ की चर्चा हुई थी, जानेवालो की परवाह हुई थी,
फिर एक रोज़ मेरे मरजानेकी शहर भरमें अफवाह हुई थी ।
ये लफ्ज़ समझ रहा है जमाना यारों,
बस यही मेरे दर्दका है ठिकाना यारों ।
यही मेरे पहले इश्क़ का फ़साना यारों ।
- दो कवियों की कलम से
"-Henna And Parshaat