#बागी
इस वसुधा से मोह भंग तेरे बिन
हुआ है मन वैरागी से,
अब ना रमता मन कहीं
मन तुझ संग है लागी से,
आँखें ऐ नींद के अथाह में भी
तेरे लिए ही है जागी से,
पूछूँ हूँ तुझको क्या तू लडेगी मेरे खातिर दस से?
मैं तो हूँ ही तेरे खातिर बागी,
तेरे लिए मैं सौ से भी लडने को हूँ राजी से।।
-----अमित RAJ-----