इंसान सोचता है
क्यों न भगवान बन जाऊं
सारी दुनियां मै ही चलाऊं
जाति, भाषा, मजहब, रीति
की दीवार बनाऊं
अपने फायदा के लिए
किसी भी हद तक
गीरूं और गिरता ही जाऊं।
इंसान सोचता है
भगवान को भी गुलाम बनाऊं
उसको नीलाम कर
खूब पैसे बनाऊं
झूठ, फरेब, धोखा,
नग्नता, अभद्रता, और स्वार्थ
का एक साम्राज्य बनाऊं
इंसान सोचता है
क्यों न भगवान बन जाऊं।
ये धरती तो जागीर है
जितना चाहूं उतना
मनमाना कर जाऊं
एकछतर राज हो सिर्फ
मानव का धरती पर
बाकी प्राणियों को
मै मनमर्जी दीवारों पर सजाऊं।
इंसान सोचता है
भगवान बन जाऊं।
दोस्तों,
ये मेरी रचना नहीं है
ये मेरी आत्मा है आज न समझ अाई तो फिर वक़्त ही नहीं होगा समझने को।
धन्यवाद
#Arjunabunty