#विश्व_पर्यावरण_दिवस_विशेष
#आ_अब_लौट_चलें
क्या सोचा था कभी हमने
कि इक दिन ऐसा आएगा
मानव की कैद से मुक्त होकर
प्रकृति का जर्रा जर्रा मुस्काएगा
भौगोलिक सीमाओं से परे
आज जनजीवन थर्राया है
लाँघकर दीवारें धर्म जाति की
यह कौन घुसपैठिया आया है
शायद प्रकृति के कर्मवीर
हमको समझाने आए हैं
यह एक नमूना भेजकर
भविष्य का दर्शन कराए हैं
थम गया है सबकुछ यकायक
कैसा नया दौर ये आया है
चेतावनी देकर मृत्यु की सबको
पुराने युग में लौटा लाया है
खाओ पियो और ऐश करो
या भूखे प्यासे तुम मरो
यह दो ही विकल्प नहीं होते
कर्मवीरों ने यह समझाया है
प्राकृतिक संपदा को सहेजना
अब तो सबको सीखना होगा
अपनी सांस्कृतिक धरोहर को
अपनाकर जंग जीतना होगा
विश्वयुद्ध का इतिहास देखकर
नई राह पर चलना होगा
जैविक युद्ध से बचने का
अब सबक हमें सीखना होगा
©डॉ वन्दना गुप्ता
मौलिक
(05/06/2020)