Hindi Quote in Poem by Nagendra Singh Sombansi

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गांव का हूं

गांव का हूं, गवार नहीं,आराम से हूं बेकाम नहीं,
पूर्व दिशा का सूरज हूं मै पश्चिम का अंधियार नहीं!

सिंधु सभ्यता का,वर्तमान हूं मै,
नकलचियों का पाखंड नहीं!
हैंडसम, स्मार्ट, की माला जपते,
हाफ पैंट को तुम मॉडल कहते!


जब भी कभी गांव तुम आते,
अपनी कुटिल सोच संग लाते!
छोड़ हमारी खुबियों को तुम,
कमियों की तस्वीर बनाते!

चलो गांव ,एहसास करा दू,सुंदरता की सैर करा दू
पुराने पनघट पर भी, यमुना घट सा तीर्थ करा दू,

रहनसहन है सीधा सदा,पर दिल्ली सरकार नचा दू
वर्षों से हूं मैं गांव उपेक्षी,पर सब की भूख मिटा दू

यहां रहोगे अनपढ़, असभ्य भूखे रह जाओगे,
हर दिन नए नए तुम ताने, मेरे बच्चो को मारे!
......✍️

Hindi Poem by Nagendra Singh Sombansi : 111462518
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