Hindi Quote in Poem by Hitesh Parmar Bhramar

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वक्त बेवक्त क्यों
सताते हो
यांदे बनकर क्यों
रुलाते हो
हम में आग थी कभी सूरज सी
उम्मीद की किरणों से क्यों जलाते हो,
और चांद भी तो कदमों में नहीं है
बादलों पे डेरा डालके
इशारों से क्यों
बुलाते हो,
तुम गए तबसे मेरी न कोई जमीं है
न आसमां
बस दो गज जमीं विरासत है मेरी
क्या कमी है अब तुम्हे
जो उसे चुराते हो।

हितेश परमार "भ्रमर"

Hindi Poem by Hitesh Parmar Bhramar : 111461049
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