एक ठिकाना, तेरे दिल में
बनाना चाहती हूँ
कोई और न हो इसमें
सिर्फ अपना ही,
राज चाहती हूँ
दुनिया के इस दस्तूर में
थक जाऊँ जब,
भाग- दौड़ कर
आकर इसमें ,
तेरे साये के तले
कुछ पल ,बिताना चाहती हूँ
इस ठिकाने को
अरमानों से सजा लूँ
जब कुछ भी न हो ,
पास मेरे,बेशकीमती
इन लम्हों के साथ
खुद को पाना चाहती हूँ
इस ठिकाने का पता
न हो किसी और को
इसे सबसे छुपाना चाहती हूँ
तेरे दिल में
एक पनाह चाहती हूँ
इस ठिकाने को
सिर्फ ,अपना बनाना चाहती हूँ