चल पड़ा है तू जो बंदे प्रकाश की तलाश में
तू कहीं न खो जाए कि आनंद की तलाश में ।
अंतहीन राह है कामना अपार है,
विलासिता की चाह है स्वार्थ बेहिसाब है।
स्वयं की ही बात हो चाहे कोई न साथ हो
चल पड़ा है तू जो बंदे प्रकाश की तलाश में
तू कहीं न खो जाए आनंद की तलाश में
अर्थ तो तू पाएगा, पर अर्थ रह न जाएगा,
स्वर्ण तो मिल ही जाएगा,पर बड़ा सताएगा।
मरीचिका ये स्वार्थ की,किस ओर लेके जाएगी,
चल पड़ा है तू जो बंदे प्रकाश की तलाश में,
तू कहीं न खो जाए आनंद की तलाश में ।
मर्म का आभास नहीं,दर्द का एहसास नहीं,
मैं हीं मैं तू चाहता, गर्त का एहसास नहीं।
छोड़ राह स्वार्थ की,आस पास देख तू,
पर्मार्थ की राह में, एक कदम चल के देख तू।
अनंत सुख तू पाएगा ,जो कभी चुक न पाएगा
चल पड़ा है तू जो बंदे प्रकाश की तलाश में
तू कहीं न खो जाए कि आनंद की तलाश में ।
#प्रकाश