जानो, कोरोना का आना।
कितना फायदे मंद हुआ।।
कर न सका कुछ ये बंदा।
कोरोना का हुड़दंग हुआ।।
मैली गंगा भी चमचम हुई।
निकला पुराना गंद हुआ ।।
आसमान में चमके तारे।
गैसों का उड़ना मंद हुआ ।।
दूर गगन में दिखते परिंदे।
मन ये मौजी तुरंग हुआ।।
रिश्ते नाते सुधर गए सारे ।
जीने का मजा मृदंग हुआ।।
प्राणी तरसा था घर रहना ।
जीने का बढ़िया ढंग हुआ।।
खाना पीना बेहतर हो गया।
बिना दवा सेहतमंद हुआ।।
सुर ताल मिला बीवी से।
खाने में गाने का रंग हुआ।।
जलेबी समोसा खाना चाहा।
पर शूगर का काम बंद हुआ।।
नजर न आये कभी वो चेहरे।
जो कहें तेरा मेरा संग हुआ।।
नफा नुक्सान हर तरफ है।
काम बढ़ा कहीं मंद हुआ।।
थमा सफर कुछ कुछ सबका।
बातों का करना आरंभ हुआ।।
खाली दिमाग शैतान का घर।
कहावत का मान पतंग हुआ।।
कहां गए सब चमत्कारी बाबे।
सबसे अपना मोहभंग हुआ।।
इसने सो रहा गुर जगाया ।
दीप भी एहसानमंद हुआ ।।
याचक हूं उन सज्जनों से ।
जिनका तन मन तंग हुआ।।
मुझसे सहमत हो न सभी।
ये तगड़ा एक प्रसंग हुआ।।
कहै सोहल फायदे कई हुए।
और मुद्दों से ध्यान भंग हुआ।।
गुरदीप सिंह सोहल
हनुमानगढ़ जंक्शन (राजस्थान)