हमारे विचार उड़ती हुई पतंग की तरह होते हैं जिस तरह हम पतंग को स्थिर रखने के लिऐ उससे बंधी डोर को सादे रहते हैं इसी तरह हमारे विचारों की स्थिरता की डोर यानी "एकाग्रता" है और इससे हम अपने विचारों में स्थिरता ला सकते हैं।
पतंग से बंधी डोर मजबूत हो तो कोई हमारी पतंग नहीं काट सकता ठीक उसी प्रकार से हमें अपने विचारों पर एकाग्रत इस प्रकार होना चहिये की अन्य कीसी विचार के प्रभाव से हमारे विचार विभक्त न हो पाऐं। #lalitraj
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